Rani Karnavati
रानी कर्णावती, पवांर वंश के राजा महिपतशाह की पत्नी थी। उनके जन्म व जन्मस्थान के सम्बंधित कोई भी ठोस जानकारी उपलब्ध नही है। यह वही महिपतशाह थे जिनके शासन में माधोसिंह जैसे सेनापति हुए थे। माधोसिंह के बारे में गढ़वाल में काफी किस्से प्रचलित हैं। पहाड़ का सीना चीरकर अपने गांव मलेथा में पानी लाने की कहानी सभी गढ़वाली को पता होगी।
जब महिपतशाह गढ़वाल के राजा थे तब 14 फरवरी 1628 को शाहजहां का राज्याभिषेक हुआ था। जब वह गद्दी पर बैठे तो देश के तमाम राजा आगरा पहुंचे थे। लेकिन राजा महिपतशाह नहीं गये। कहा जाता है कि शाहजहां इससे चिढ़ गया था। इसके अलावा किसी ने मुगल शासकों को बताया कि गढ़वाल की राजधानी श्रीनगर में सोने की खदानें हैं। इस बीच महिपतशाह और उनके वीर सेनापति की मौत हो गई। राजा महिपतशाह की मृत्यु के समय उनके पुत्र पृथ्वीपतिशाह केवल सात साल के थे। तब राजगद्दी पर पृथ्वीपतिशाह ही बैठे लेकिन राजकाज उनकी मां रानी कर्णावती ने चलाया।
शाहजहां ने इसका फायदा उठाकर गढ़वाल पर आक्रमण करने का फैसला किया। उन्होंने अपने एक सेनापति नजाबत खान को यह जिम्मेदारी सौंपी। “निकोलो मानुची” ने अपनी किताब में लिखा है कि मुगल जनरल 30 हजार घुड़सवारों और पैदल सेना के साथ गढ़वाल की तरफ कूच कर गया था। गढ़वाल के राजा (यानि रानी कर्णावती) ने उन्हें अपनी सीमा में घुसने दिया लेकिन जब वे वर्तमान समय के लक्ष्मणझूला से आगे बढ़े तो उनके आगे और पीछे जाने के रास्ते रोक दिये गये। गंगा के किनारे और पहाड़ी रास्तों से अनभिज्ञ मुगल सैनिकों के पास खाने की सामग्री समाप्त होने लगी। मुगल सेना कमजोर पड़ने लगी और ऐसे में सेनापति ने गढ़वाल के राजा के पास संधि का संदेश भेजा लेकिन उसे ठुकरा दिया गया। मुगल सेना की स्थिति बदतर हो गयी थी। लेकिन रानी कर्णावती ने मुगलों को सजा देने का नायाब तरीका निकाला। रानी ने संदेश भिजवाया कि वह सैनिकों को जीवनदान दे सकती है लेकिन इसके लिये उन्हें अपनी नाक कटवानी होगी। मुगल सैनिकों के हथियार छीन दिये गये थे और आखिर में उनके एक एक करके नाक काट दिये गये।
कहा जाता है कि जिन सैनिकों की नाक काटी गयी उनमें सेनापति नजाबत खान भी शामिल था। वह इससे काफी शर्मसार था और उसने मैदानों की तरफ लौटते समय अपनी जान दे दी थी। उस समय रानी कर्णावती की सेना में एक अधिकारी दोस्त बेग हुआ करता था, जिसने मुगल सेना को परास्त करने और उसके सैनिकों को नाक कटवाने की कड़ी सजा दिलाने में अहम भूमिका निभायी थी। यह 1640 के आसपास की घटना है।
कुछ इतिहासकार रानी कर्णावती के बारे में इस तरह से बयां करते हैं कि वह अपने विरोधियों की नाक कटवाकर उन्हें कड़ा दंड देती थी। इनके अनुसार कांगड़ा आर्मी के कमांडर नजाबत खान की अगुवाई वाली मुगल सेना ने जब दून घाटी और चंडीघाटी (वर्तमान समय में लक्ष्मणझूला) को अपने कब्जे में कर दिया तब रानी कर्णावती ने उसके पास संदेश भिजवाया कि वह मुगल शासक शाहजहां के लिये जल्द ही दस लाख रूपये उपहार के रूप में उसके पास भेज देगी। नजाबत खान लगभग एक महीने तक पैसे का इंतजार करता रहा। इस बीच गढ़वाल की सेना को उसके सभी रास्ते बंद करने का मौका मिल गया। मुगल सेना के पास खाद्य सामग्री की कमी पड़ गयी और इस बीच उसके सैनिक एक अज्ञात बुखार से पीड़ित होने लगे। गढ़वाली सेना ने पहले ही सभी रास्ते बंद कर दिये थे और उन्होंने मुगलों पर आक्रमण कर दिया। रानी के आदेश पर सैनिकों के नाक काट दिये गये। नजाबत खान जंगलों से होता हुआ मुरादाबाद तक पहुंचा था। कहा जाता है कि शाहजहां इस हार से काफी शर्मसार हुआ था। शाहजहां ने बाद में अरीज खान को गढ़वाल पर हमले के लिये भेजा था लेकिन वह भी दून घाटी से आगे नहीं बढ़ पाया था। बाद में शाहजहां के बेटे औरंगजेब ने भी गढ़वाल पर हमले की नाकाम कोशिश की थी।
रानी कर्णावती का जिक्र ‘मुगल इंडिया’ भी मिलता है, लेकिन उसमे किसी का नाम नही लिया गया है बस गढ़वाल की रानी के नाम से बताया गया है, स्वभाविकत: वह रानी कर्णावती ही है। ‘मुगल इंडिया’ को स्टोरिया डो मोगोर ने 1653 से 1708 के बीच लिखा था, जबकि मुगलों ने 1640 के आसपास गढ़वाल पर हमला किया था।